प्रेमिका की हत्या – समाज पर कलंक, व्यवस्था पर प्रश्नचिन्ह
हरिद्वार से आई यह खबर कि एक युवती की हत्या कर उसके मुस्लिम प्रेमी ने शव को अजगरों वाले कुएँ में फेंक दिया, केवल एक व्यक्तिगत अपराध भर नहीं है। यह हमारी सामाजिक चेतना, प्रशासनिक विफलता और सामूहिक संवेदनहीनता का जीवंत प्रमाण है। प्रेम, विश्वास और जीवन साथी का वचन जहाँ सबसे पवित्र होना चाहिए, वहीं विश्वासघात और निर्ममता का यह उदाहरण पूरे समाज पर कलंक की तरह चिपक गया है।
अपराध की भयावहता
किसी युवती को योजनाबद्ध तरीके से मार डालना और शव को छिपाने के लिए ‘अजगरों वाले कुएँ’ में फेंक देना, केवल हत्या नहीं बल्कि अमानवीयता की पराकाष्ठा है। यह उस मानसिकता की झलक है जिसमें न तो जीवन की गरिमा है, न ही प्रेम का मूल्य। यह घटना उन तमाम परिवारों और युवाओं को झकझोरने वाली है जो आज भी रिश्तों को ईमानदारी और विश्वास पर टिकाए रखना चाहते हैं।
पुलिस और प्रशासन की भूमिका
समाचार से स्पष्ट है कि घटना के बाद मोबाइल लोकेशन व अन्य सुरागों से सच्चाई सामने आई। प्रश्न यह है कि क्या स्थानीय पुलिस और खुफिया तंत्र इतना सुस्त है कि एक महिला के गायब होने के बाद दो वर्ष तक सच सामने नहीं आ सका? यदि परिवार का दबाव न होता तो क्या यह मामला हमेशा दफ्न ही रह जाता? पुलिस और प्रशासन की यह सुस्ती अपराधियों के हौसले बुलंद करने का काम करती है।
सामाजिक सन्देश और विफलता
यह घटना प्रेम, विवाह और विश्वास के पवित्र रिश्ते को ‘स्वार्थ और धोखे’ की भूमि पर गिरा देती है। जब युवा पीढ़ी देखती है कि कोई प्रेमिका को मारकर वर्षों तक छिपा सकता है, तो समाज में अपराध का सामान्यीकरण होता है। क्या हम यही शिक्षा आने वाली पीढ़ियों को देना चाहते हैं? यह केवल एक हत्या नहीं, बल्कि सामाजिक मर्यादा, स्त्री सम्मान और भारतीय मूल्य-व्यवस्था पर कलंक है।
कठोर दंड ही समाधान
अपराधी चाहे किसी भी धर्म, जाति या वर्ग का क्यों न हो, इस तरह की घटनाओं पर तुरंत और कठोरतम दंड होना चाहिए। न्यायालय और प्रशासन को यह समझना होगा कि ऐसे अपराध केवल एक व्यक्ति की हत्या नहीं, बल्कि समाज के नैतिक ताने-बाने की हत्या हैं। यदि ऐसे अपराधियों को शीघ्र और कड़ी सजा नहीं मिली, तो यह प्रवृत्ति और बढ़ेगी।
हरिद्वार की यह घटना हमें यह याद दिलाती है कि अपराध केवल अपराधी की मानसिकता से नहीं, बल्कि व्यवस्था की कमजोरी और समाज की चुप्पी से भी पनपता है। यदि हम चुप रहेंगे, यदि पुलिस सुस्त रहेगी और यदि न्याय धीमा रहेगा – तो आने वाली पीढ़ियाँ हमें ही दोष देंगी।
यह सम्पादकीय स्पष्ट घोषणा करता है –
“स्त्री की सुरक्षा और जीवन का सम्मान सर्वोपरि है। जो इसका हनन करेगा, वह केवल क़ानून का अपराधी नहीं, बल्कि समाज और मानवता का शत्रु है।”

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