रविवार, 28 सितंबर 2025

"दशहरा का असली सवाल: रावण कौन ?", पुतला दहन उसी का हो!

विशेष सामाजिक

"दशहरा का असली सवाल: रावण कौन है?"

दशहरा बुराई के अंत का पर्व है। परंपरा है कि रावण का पुतला जलाकर समाज यह संदेश देता है कि असत्य और अन्याय की कोई जगह नहीं। लेकिन आज कुछ जगहों पर दशहरा का रूप बिगाड़ा जा रहा है। कातिल महिलाओं या किसी खास जाति की स्त्रियों के पुतले जलाना एक ऐसी विकृत मानसिकता है जो बुराई से लड़ने के बजाय नारी को निशाना बनाती है।


यहाँ सवाल साफ़ है—क्या अपराध और अत्याचार सिर्फ महिलाओं से जुड़े हैं? हत्या कौन करता है? बलात्कार कौन करता है? सत्ता और पैसे के दम पर भ्रष्टाचार कौन फैलाता है? समाज को जातिवाद, नशा और हिंसा की आग में कौन झोंकता है? आँकड़े गवाही देते हैं कि इनमें सबसे बड़ा हिस्सा पुरुषों का है। फिर क्यों दशहरे पर बलात्कारियों, कातिल पुरुषों और भ्रष्ट नेताओं के पुतले नहीं जलते?

सच यह है कि पितृसत्तात्मक सोच आज भी इस त्योहार की आड़ में जिंदा है। महिला अगर गलती करे तो उसका पुतला बनाकर चौराहे पर जलाया जाएगा, लेकिन पुरुष चाहे बलात्कार करे या इंसाफ़ का सौदा—उसका पुतला कोई नहीं बनाता। यह दोहरा मापदंड न सिर्फ़ अन्यायपूर्ण है बल्कि दशहरे की आत्मा के खिलाफ़ भी है।

दशहरा सिर्फ़ रस्म नहीं, यह सामाजिक प्रतिज्ञा का दिन है। हमें तय करना होगा कि जलाना किसे हहिलाओं को या उन बलात्कारियों को जो समाज की बेटियों का जीवन बर्बाद करते हैं?,किसी जाति को या उन माफ़ियाओं को जो जनता का खून चूसते हैं? निर्दोष प्रतीकों को या उस भ्रष्ट राजनीति को जो देश का भविष्य बेच रही है?

अगर बुराई का अंत ही लक्ष्य है, तो पुतले बदलने होंगे। पुतला उन पुरुष अपराधियों का बनना चाहिए जो रावण से भी अधिक घृणित हैं। तभी दशहरा पर्व का वास्तविक संदेश जिंदा रहे.

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