मोदी विज़न @2047 : लक्ष्य सहकारिता से ही सम्भव,
राजेंद्र नाथ तिवारी
भारत आज़ादी के अमृतकाल में प्रवेश कर चुका है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 2047 तक देश को विकसित राष्ट्र बनाने का संकल्प प्रस्तुत किया है। यह केवल सरकारी योजनाओं या पूँजी निवेश पर निर्भर नहीं है, बल्कि सहकारिता की भावना पर आधारित है। भारत का वास्तविक सामर्थ्य तभी प्रकट होगा जब गाँव-गाँव, खेत-खेत और समाज के हर वर्ग में सामूहिकता का भाव जीवित रहेगा।
सहकारिता की परंपरा
भारतीय समाज की संस्कृति ही सहकारिता पर आधारित रही है। गाँवों में श्रमदान की परंपरा, पंचायती व्यवस्था और सामूहिक खेती इसके प्रमाण हैं। आधुनिक दौर में अमूल जैसी डेयरी सहकारी समितियों ने सिद्ध किया कि जब किसान और श्रमिक एकजुट होते हैं, तो वे बड़े उद्योगपतियों को भी चुनौती दे सकते हैं।
मोदी विज़न और सहकारिता
प्रधानमंत्री मोदी ने ‘सहकार से समृद्धि’ का नारा देते हुए सहकारिता मंत्रालय का गठन किया। किसान उत्पादक संगठन (FPO), स्वयं सहायता समूह, महिला मंडल और डेयरी समितियाँ अब राष्ट्रीय विकास की रीढ़ मानी जा रही हैं।
- कृषि सुधार : छोटे किसान मिलकर बाज़ार में प्रतिस्पर्धा कर सकते हैं।
- ग्रामीण विकास : सहकारी ढाँचे से गाँवों में शिक्षा, स्वास्थ्य और रोज़गार के अवसर बढ़ेंगे।
- आर्थिक सशक्तिकरण : जब पूँजी, संसाधन और श्रम का साझा उपयोग होगा, तब आत्मनिर्भर भारत का मार्ग और सरल बनेगा।
- सामाजिक समरसता : सहकारिता जाति-पाँति और वर्गभेद से ऊपर उठकर समानता का आधार देती है।
चुनौतियाँ
सहकारी समितियों के इतिहास में भ्रष्टाचार, भाई-भतीजावाद और राजनीतिक हस्तक्षेप जैसी समस्याएँ सामने आई हैं। यदि पारदर्शिता और ईमानदारी से इन संस्थाओं का संचालन हो, तो वे भारत की नई विकास यात्रा का सबसे मजबूत स्तंभ बन सकती हैं।
परिणति
विजन 2047 केवल एक लक्ष्य नहीं, बल्कि सामूहिक प्रयास की पुकार है। सरकार नीतियाँ बना सकती है, पूँजी निवेश बढ़ा सकती है, परन्तु समाज का उत्थान तभी होगा जब हर नागरिक सहयोग और सहभागिता का भाव अपनाए।
निश्चित ही यह कहना उचित है कि –
“मोदी विज़न @2047 का लक्ष्य सहकारिता से ही सम्भव है।”

बहुत अच्छा
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