शनिवार, 29 नवंबर 2025

“यदि कौटिल्य, राहुल से मिलते तो…?”




यदि कौटिल्य, राहुल से मिलते तो!


(एक व्यंग्यात्मक राजनीतिक कथा)

कौटिल्य यदि राहुल से मिल जाते, तो पहले ही क्षण मुस्कराकर पूछते—
“राजकुमार! राजनीति कोई विदेश यात्रा का टिकट नहीं, राज्य-शास्त्र का तप है…
और तप करने वालों की पहली शर्त है— स्मृति स्थिर हो, बात स्थायी हो.”
राहुल शायद जवाब देते—“लेकिन मेरी बात तो हर प्रेस कॉन्फ़्रेंस में बदल जाती है…”
कौटिल्य तुरंत चाणक्य-स्मित के साथ कहते—“अरे वही तो समस्या है!
न नीति में निरंतरता, न विचार में परिपक्वता—ऐसे में न साम मिलता है, न दाम काम आता है,बचे हुए ‘दंड’ और ‘भेद’ ही हैं… जो तुम्हारे ऊपर ही उलटे पड़ जाते हैं।”

फिर कौटिल्य अपनी दाढ़ी सहलाकर कहते—“तुम्हारी राजनीति का सबसे बड़ा संकट यह नहीं कि तुम सत्ता में नहीं,संकट यह है कि तुम्हारे पास सत्ता-योग्यता की तैयारी ही नहीं।”राहुल बीच में बोल पड़ते—“तो क्या मैं प्रधानमंत्री बन सकता हूँ?”

कौटिल्य शांत स्वर में उत्तर देते—
“राजनीति में पद माँगा नहीं जाता,
योग्यता से खींचकर लिया जाता है…
और योग्यता का पहला पाठ—
अस्थिर मन, असंगत बयान और विदेशों में देश-भंजन करना छोड़ना पड़ेगा!”

और अंत में कौटिल्य निर्णायक वाक्य बोलते—
**“राजकुमार! जनता मूर्ख नहीं है।उसे राम चाहिए, काम चाहिए, और नेतृत्व चाहिए—न कि हर चुनाव में नया प्रयोग करते हुए खोया हुआ राजकुमार.”**




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