यह खबर गोंडा जिले के बीएसए (जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी) और दो जिला समन्वयकों पर 2.25 करोड़ रुपये रिश्वत मांगने का आरोप उजागर करती है, जिसमें फर्नीचर आपूर्ति की टेंडर प्रक्रिया में 30 लाख रुपये एडवांस लेने और जांच में फर्जी दस्तावेज़ों की बात कही गई है। भ्रष्टाचार निवारण कोर्ट ने इनके खिलाफ मुकदमा दर्ज करने का आदेश दिया है, यहां तक कि टेंडर की राशि, स्कूलों की संख्या, फर्नीचर और निर्णय प्रक्रिया में कई स्तरों पर अनियमितता और कमीशन मांगने का आरोप साबित होता है ।व्यवस्था की कमी और आक्रोशइस केस से साफ़ है कि हमारे प्रशासनिक तंत्र में पारदर्शिता और निगरानी की गंभीर कमी है.
टेंडर प्रक्रिया में फर्जी दस्तावेज़, गलत आंकड़े (जैसे 5.91 करोड़ की जगह 9.86 करोड़, फिर 19.54 करोड़ तक की मांग), और 15% कमीशन मांगना घोर अनियमितता का उदाहरण है, जो सिस्टम के भीतर भ्रष्टाचार के नेटवर्क को दर्शाता है।अदालत तक मामला पहुंचने के बावजूद ऐसे बड़े भ्रष्टाचार के मामलों में त्वरित कार्रवाई की कमी महसूस होती है; न्यायालय आदेश देने के बाद भी जांच प्रक्रिया और सज़ा की दर धीमी है।आक्रमक टिप्पणीगोंडा ज़िले में शिक्षा व्यवस्था को लूट का विषय बना दिया गया है, जहां स्कूलों के बच्चों के फर्नीचर तक के नाम पर लाखों-करोड़ों की रिश्वतखोरी और कमीशनखोरी धड़ल्ले से चल रही है।ऐसे मामलों में सिर्फ अफसरों को दोषी ठहराना पर्याप्त नहीं—पूरी व्यवस्था में जो लचरता, निरीक्षण और जवाबदेही की कमी है, वही असली अपराधी है।
जनता के पैसों पर चलने वाले तंत्र में जब जवाबदेही खत्म हो जाती है, तब व्यवस्था सिर्फ काग़ज़ी बनकर रह जाती है और भ्रष्ट अधिकारी आराम से अपराध करते हैं।सुधार के सुझावस्कूलों की टेंडर और खरीद प्रक्रिया में पूरी पारदर्शिता, ऑनलाइन पोर्टल और नागरिक निगरानी समिति की ज़रूरत है।भ्रष्टाचार निवारण कानून की कमजोरियों को दूर कर त्वरित जांच व सख्त सज़ा का प्रावधान होना चाहिए, ताकि अफसरों को संरक्षण न मिले।शिक्षा विभाग समेत सभी प्रशासनिक विभागों में नियमित ऑडिट और स्वतंत्र जांच तंत्र लागू करना होगा, तभी व्यवस्था में सुधार संभव है.
Kयह खबर न सिर्फ गोंडा बल्कि पूरे तंत्र की हालत का आक्रामक और गंभीर उदाहरण है, जिससे साफ होता है कि जब तक गहरी व्यवस्था सुधार की पहल नहीं की जाती, ऐसी घटनाएं आम होती रहेंगी।
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