राजेन्द्र नाथ तिवारी
सुहृद जन वन्देमातरम लेख श्रृंखला 150 का द्वितीय प्रसून 🙏बंकिम चंद्र की इस रचना को आधुनिक भारत की राष्ट्रवादी साहित्यिक धरोहर माना जाता है, जिसने तोड़फोड़ के ज़माने में सांस्कृतिक एवं राजनीतिक एकजुटता का संदेश दिया।हालांकि, "आनंदमठ" और "वन्देमातरम" को लेकर मुस्लिम संगठनों में विशेषकर मुस्लिम लीग में विवाद भी उत्पन्न हुआ। उपन्यास में मुस्लिम शासकों के खिलाफ टकराव और विरोधी स्वर के कारण कुछ कट्टर समूहों ने इसे सांप्रदायिक माना; परंतु मूलतः यह रचना अंग्रेजी शासन और अन्य विदेशी दमन के विरुद्ध राष्ट्रीय चेतना को सशक्त बनाने पर केंद्रित थी। अंग्रेजों ने भी इस रचना को खतरे के रूप में देखा और इसे प्रतिबंधित करने की पहल की।संक्षेप में कहा जा सकता है कि "आनंदमठ" और "वन्देमातरम" ने तत्कालिक सन्यासी आंदोलन को साहित्यिक और सांस्कृतिक आधार प्रदान किया, जिससे यह आंदोलन केवल स्थानीय विद्रोह नहीं रह गया बल्कि समूचे भारत में आज़ादी और राष्ट्र निर्माण के लिए प्रेरणास्रोत बन गया।
बंकिम चंद्र ने उपन्यास और गीत के जरिए सन्यासी विद्रोह को नई दिशा दी, जो बाद में स्वतंत्रता संग्राम की जन नाटकीयता में बदल गई।
राजेंद्र नाथ तिवारी

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