बुधवार, 26 नवंबर 2025

क्रांति -बलिदान - त्याग की त्रिवेणी वदेमातरम( २०)

 विंशतिः श्रृंखला 20

क्रांति -बलिदान - त्याग की त्रिवेणी,वन्देमातरम!



 वन्देमातरम न केवल भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का प्रेरक मंत्र था बल्कि क्रांति और बलिदान का प्रतीक भी रहा है। इस गीत का महत्व और उसमें समाहित बलिदान की भावना स्वतंत्रता सेनानियों के अदम्य उत्साह और देशभक्ति की आत्मा का स्त्रोत बनी। वन्देमातरम ने भारत माता के प्रति श्रद्धा, प्रेम और त्याग की भावना को जागृत किया, जिससे कई क्रांतिकारियों ने अपने प्राणों की आहुति दी।वन्देमातरम का अर्थ और प्रेरणावन्देमातरम का शाब्दिक अर्थ है "मां को नमन" या "मां को प्रणाम"। यह बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय द्वारा 1875 में उपन्यास 'आनंदमठ' के लिए रचित था, जो उस समय बंगाल के अकाल और सन्यासी विद्रोह की पृष्ठभूमि पर आधारित था। गीत भारत माता की प्राकृतिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक समृद्धि की महिमा करता है, जिसमें मां को देवी दुर्गा, लक्ष्मी और सरस्वती के रूप में देखा गया है। इस गीत ने भारतीय जनता को मातृभूमि के प्रति समर्पण का भाव और बलिदान की चेतना से जोड़ा, जो स्वतंत्रता संग्राम का अहम हिस्सा बनी.क्रांति में वन्देमातरम की भूमिकावन्देमातरम स्वतंत्रता संग्राम के दौरान क्रांतिकारियों के उत्साह और हौसले का मूल मन्त्र बन गया। इसने अंग्रेजों के विरुद्ध विरोध-प्रदर्शनों में लाखों लोगों को एकजुट किया। 

1905 में बंगाल विभाजन के विरोध में यह गीत सभी जगह गूंजा। इसे वीर सावरकर, भगत सिंह और सुभाष चंद्र बोस जैसे क्रांतिकारियों ने अपनी प्रेरणा माना। फांसी की सजा भुगतते समय भी कई क्रांतिकारियों ने अपने होठों पर वन्देमातरम को गूंजाया। इस गीत ने आत्म-बलिदान की शक्ति भी दी, जिससे क्रांतिकारी मौत को भयभीत न होकर स्वीकार करते थे.बलिदान और समर्पण का प्रतीकवन्देमातरम गीत ने स्वतंत्रता सेनानियों को अपने प्राणों का बलिदान करने के लिए प्रेरित किया। यह गीत न केवल शब्दों का संगम था, बल्कि एक ऐसा आध्यात्मिक मंत्र था जिसने हजारों ने वीरतापूर्वक फांसी चढ़ने और गोली खाने का साहस जुटाया। 1857 की क्रांति से लेकर 1947 तक यह गीत भारतवासियों के हृदय में मातृभूमि के लिए समर्पण का भाव जगाए रखता रहा।


 इस गीत से जुड़ी भावनाओं में जाति, धर्म और वर्ग की सीमाएं नहीं थीं, सिर्फ एकता और देशभक्ति थी.सामाजिक-राजनैतिक विमर्श में वन्देमातरमहालांकि वन्देमातरम के कुछ छंदों को लेकर सांप्रदायिक विवाद भी रहे, उनमें से कुछ छंदों में मां की पूजा हिंदू देवी-देवताओं के रूप में की गई थी, जो मुस्लिम समुदाय के कुछ वर्ग के लिए स्वीकार्य नहीं था। इस कारण से कांग्रेस ने 1937 में केवल पहले दो छंदों को राष्ट्रीय गीत के रूप में स्वीकार किया। इसके बावजूद यह गीत स्वतंत्रता संग्राम की एक शक्तिशाली आवाज और बलिदान की अमर गाथा के रूप में आज भी स्मरणीय है। 150 वर्ष पूरे होने पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे भारत की एकता और शक्ति का अमर स्वर बताया.वन्देमातरम ने स्वाधीनता संग्राम में क्रांति, त्याग और वलिदान की भावना को जीवित रखा, भारत सरकार और जनता के लिए एक प्रेरक शक्ति बनकर उभरा। यह केवल एक गीत नहीं, बल्कि देशभक्ति की एक अनमोल धरोहर और बलिदान का एक प्रतीक है जिसने किसानों, क्रांतिकारियों, युवाओं और हर वर्ग को मातृभूमि की रक्षा के लिए एकजुट किया..🙏 क्रमशः 

राजेन्द्र नाथ तिवारी 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें