सोमवार, 20 अक्टूबर 2025

शिक्षा क़ी दुकान में बिकता विश्वास, भ्रष्टाचार ने शिक्षा को माल और शिक्षक को बनाया व्यापारी

 

 “शिक्षा के मंदिरों में दलालों का राज — जब ‘केडीसी’ और ‘एपीएन’ बन गए भ्रष्टाचार के केंद्र”


शिक्षा वह आधार है, जिस पर राष्ट्र का भविष्य टिका होता है। लेकिन जब यही शिक्षा बिकने लगे, तो समझ लीजिए समाज का नैतिक पतन शुरू हो चुका है। हाल में उजागर हुआ केडीसी और एपीएन कॉलेजों का नियुक्ति घोटाला इसी गिरावट का भयावह उदाहरण है। यह केवल धन के लेन-देन का मामला नहीं, बल्कि एक पूरी पीढ़ी के साथ धोखे की कहानी है।

खबर बताती है कि इन संस्थानों में नियुक्तियों के नाम पर फर्जीवाड़ा, पक्षपात और धनवर्षा का खेल वर्षों से चलता रहा। उच्च शिक्षा अधिकारी, प्राचार्य और प्रबंध तंत्र — सभी इस “सुव्यवस्थित भ्रष्टाचार” की कड़ी में जुड़े पाए गए। यह स्थिति दर्शाती है कि शिक्षा के क्षेत्र में अब योग्यता नहीं, बल्कि पैसे और पैरवी की भाषा ही समझी जाती है।

जिन संस्थानों से नैतिकता, ज्ञान और चरित्र का प्रकाश निकलना चाहिए था, वे अब अंधेरे के सौदागर बन चुके हैं। मेरिट लिस्ट गायब कर दी जाती है, पात्र उम्मीदवारों को बाहर कर अपात्रों को जगह दी जाती है। जांच बैठती है, पर फाइलें भी “गायब” हो जाती हैं। यह केवल प्रशासनिक लापरवाही नहीं, बल्कि न्याय व्यवस्था पर तमाचा है।

सबसे अधिक पीड़ित वे युवा हैं जिनका सपना था — पढ़ाई से भविष्य बदलना। जब कॉलेज और विश्वविद्यालय ही “नियुक्ति मंडी” बन जाएं, तो मेहनतकश विद्यार्थियों की मेहनत का मोल क्या बचेगा? हर फर्जी नियुक्ति किसी ईमानदार युवा का सपना कुचलती है।

यह विडंबना नहीं तो क्या है कि शिक्षक बनने के लिए रिश्वत दी जाए, और शिक्षा देने वाला ही ईमानदारी का पाठ पढ़ाए? यह स्थिति बताती है कि भ्रष्टाचार अब अपवाद नहीं, बल्कि संस्कृति बन चुका है — एक ऐसी संस्कृति जो पूरे समाज को खोखला कर रही है।

अब सवाल सिर्फ यह नहीं कि “दोषी कौन है”, बल्कि यह कि “कब तक?” कब तक हम अपने बच्चों को ऐसे संस्थानों में भेजेंगे जो डिग्री तो देते हैं पर मूल्य नहीं? कब तक शिक्षा के नाम पर व्यापार चलता रहेगा?

सरकार को इस पूरे तंत्र की गहन न्यायिक जांच करानी चाहिए। दोषियों को सिर्फ निलंबन नहीं, बल्कि कड़ी सजा दी जानी चाहिए ताकि संदेश जाए कि शिक्षा का अपमान बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।

शिक्षा का शुद्धिकरण केवल नीतियों से नहीं, बल्कि साहसिक नैतिक निर्णयों से होगा। यदि यह देश सच्चे अर्थों में ज्ञान और सत्य पर टिका रहना चाहता है, तो आवश्यक है कि शिक्षा के मंदिरों को दलालों के कब्जे से मुक्त कराया जाए — वरना अगली पीढ़ी न ज्ञान सीखेगी, न ईमान।


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें