बस्ती
बस्ती अस्पताल में बाहर की दवा लिखने की स्थितिबस्ती जिला अस्पताल में की जांच में स्पष्ट रूप से पाया गया है कि डॉक्टर नियम तोड़कर भारी मात्रा में बाहर की दवा लिख रहे हैं।कई मरीजों ने बताया कि उन्हें अस्पताल के अलावा 800-1200 रुपये तक बाहरी दुकान से दवाएं खरीदनी पड़ीं।अस्पताल में दलालों और मेडिकल रिप्रजेंटेटिव्स की सक्रियता भी देखी गई, जो डॉक्टर के चेंबर के पास ही रहते हैं।प्रशासनिक अधिकारी डॉक्टरों को लगातार चेतावनी पत्र जारी कर रहे हैं, और कहा गया है यदि डॉक्टर बाहर की दवा लिखते हैं तो उनके खिलाफ विभागीय कार्रवाई होगीवास्तविकता यह है कि शिकायत के बावजूद सख्ती कम लागू होती है और मरीज मजबूरन बाहर से दवा खरीदते हैं।मरीजों और समाज की प्रतिक्रियाबाहरी दवा लिखने के विरोध में मरीजों द्वारा अस्पताल में हंगामा या विरोध भी देखा गया है।आमतौर पर दो-चार डॉक्टरों को छोड़कर बाकी लगभग सभी अस्पताल के पर्चे के अलावा छोटी पर्ची पर बाहर की दवा लिखते हैं।कानून और विभागीय कार्रवाई"सीधा जेल" जैसी सख्त कार्रवाई का प्रावधान बहुत दुर्लभ है, लेकिन BNS 2023, Consumer Act व विभागीय नियमों के तहत जांच एवं सजा का प्रावधान है।बस्ती जिला अस्पताल में बाहर की दवा लिखना एक आम समस्या है और मीडिया रिपोर्ट व स्थानीय जांच के अनुसार अधिकांश डॉक्टर अस्पताल की उपलब्ध दवा के साथ-साथ बाहर की दवा भी लिख रहे हैं। सरकार द्वारा डॉक्टरों को स्पष्ट निर्देश दिए गए हैं कि मरीज को केवल उपलब्ध दवाएं ही लिखी जाएं, लेकिन प्रायः डॉक्टर्स कमीशन या दुकानदारों से मिलीभगत के कारण बाहर की महंगी दवाएं लिखते हैं, जिससे गरीब मरीजों पर अतिरिक्त बोझ पड़ता है
प्रशासन रोगियों की शिकायत पर डॉक्टर का जवाब तलब कर सकता है, चेतावनी भेज सकता है या निलंबन जैसी कार्रवाई कर सकता है।निष्कर्षवास्तविकता यही है कि बस्ती अस्पताल में बाहर की दवा लिखना आम है; सरकारी आदेशों व नैतिकता के बावजूद यह समस्या लगातार बनी हुई है। प्रशासन को सख्त कार्रवाई करके पारदर्शिता, सप्लाई व निगरानी में सुधार करने की आवश्यकता है, जिससे मरीजों का हित व नियमों का सम्मान सुनिश्चित हो सके।बस्ती जिला अस्पताल में, सरकार व स्वास्थ्य मंत्री के स्पष्ट निर्देशों के बावजूद डॉक्टर बड़े पैमाने पर बाहर की दवाएं ही लिख रहे हैं, और यह मरीजों के लिए आम समस्या बन गई है। मरीजों को अस्पताल की दवा उपलब्ध होने के बावजूद, विभिन्न डॉक्टर कमीशन और निजी फायदे के लिए बाहर की महंगी दवाएं लिख रहे हैं, जिससे उन्हें आर्थिक बोझ उठाना पड़ता है।स्थानीय हालातअस्पताल में रोज़ाना सैकड़ों-हजारों मरीज ओपीडी में आते हैं, जिनमें ज्यादातर को बाहर से ही दवा खरीदनी पड़ती है।दो-चार ईमानदार डॉक्टरों को छोड़कर लगभग सभी, अस्पताल की उपलब्ध दवा के साथ बाहर की दवा भी लिखते हैं—कई बार छोटी पर्ची पर मरीजों ने बाहर की दवा लिखे जाने के विरोध में आवाज भी उठाई, लेकिन बदलाव कम ही दिखता है।प्रशासनिक चेतावनी और कार्रवाईस्वास्थ्य मंत्री व डिप्टी सीएम द्वारा आदेश की अवहेलना के मामले बार-बार उजागर होते हैं, और विभाग अस्पताल व डॉक्टरों को बार-बार चेतावनी पत्र भेजता है, लेकिन जमीनी सख्ती कम है।
अगर कोई डॉक्टर लगातार नियम तोड़ता है, तो उनके विरुद्ध विभागीय जांच व कार्रवाई का प्रावधान है, पर "सीधा जेल" जैसी सजा सिरे से अपवाद है—अधिकतर जांच, चेतावनी, या सस्पेंशन ही होती है।निष्कर्षगांठ बात यही है कि बस्ती जिला अस्पताल जैसी जगहों पर बाहर की दवा लिखना आम परंपरा बन गई है, जिससे गरीब मरीजों की जेब पर भारी असर पड़ता है। प्रशासन को पारदर्शिता, निगरानी, और अस्पताल में बेहतर दवा-सप्लाई की व्यवस्था करनी चाहिए ताकि नियमों का पालन और मरीज हित सुरक्षित रह सके।0

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