शरद पूर्णिमा: अमृत और चांदनी रात का संदेश
देवर्षी मिश्रा, गोण्डा
शरद पूर्णिमा हिंदू पंचांग के अनुसार आश्विन मास की पूर्णिमा को मनाई जाती है। यह दिन न केवल धार्मिक, बल्कि वैज्ञानिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण माना गया है। ऐसा कहा जाता है कि वर्ष में केवल इसी रात को चंद्रमा अपनी सोलहों कलाओं से पूर्ण होकर अमृत बरसाता है। इसीलिए इसे कोजागरी पूर्णिमा या रास पूर्णिमा भी कहा जाता है।
प्राचीन मान्यताओं के अनुसार, शरद पूर्णिमा की रात स्वयं भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी के पूजन का विशेष महत्व है। इस दिन माता लक्ष्मी धरती पर भ्रमण करती हैं और जो व्यक्ति जागकर, श्रद्धा के साथ उनकी आराधना करता है, उसके घर में समृद्धि, शांति और सौभाग्य का वास होता है। “कोजागरी” शब्द का अर्थ ही है — “कौन जाग रहा है?” अर्थात जो इस रात जागरण और उपासना करता है, वही माँ लक्ष्मी की कृपा का अधिकारी बनता है।
शरद पूर्णिमा की सबसे अद्भुत विशेषता उसकी चांदनी रात है। इस दिन चंद्रमा की रोशनी सबसे तेज़ और शीतल होती है। लोक मान्यता है कि उस रात चांदनी में अमृत की बूँदें घुली रहती हैं। इसी कारण लोग इस रात खीर बनाकर खुले आसमान के नीचे रखते हैं। माना जाता है कि चंद्रकिरणों के स्पर्श से वह खीर अमृतमय हो जाती है, और उसे प्रातःकाल प्रसाद स्वरूप ग्रहण करने से स्वास्थ्य और सौभाग्य की प्राप्ति होती है।
वैज्ञानिक दृष्टि से भी इस परंपरा का गहरा अर्थ है। शरद ऋतु में वातावरण परिवर्तनशील होता है; वर्षा के बाद शुद्ध आकाश और ठंडी चांदनी शरीर और मन को संतुलित करती है। इस समय चंद्रमा की किरणों में विशेष प्रकार की ऊर्जा और औषधीय गुण पाए जाते हैं, जो मानसिक तनाव कम करने और शरीर के तापमान को नियंत्रित रखने में सहायक होते हैं।
शरद पूर्णिमा का एक अन्य आध्यात्मिक आयाम रास लीला से जुड़ा है। इसी दिन वृंदावन में भगवान श्रीकृष्ण ने गोपियों के साथ दिव्य रास किया था। यह घटना केवल प्रेम की नहीं, बल्कि आत्मा और परमात्मा के मिलन का प्रतीक है। यह बताती है कि जब मन शुद्ध हो जाता है, तब वह दिव्यता के साथ एकाकार हो सकता है।
आज के युग में शरद पूर्णिमा का संदेश और भी प्रासंगिक है। यह हमें सिखाती है कि जीवन में शांति, सौंदर्य और संतुलन कितना आवश्यक है। जिस प्रकार चंद्रमा अपनी शीतल रोशनी से अंधकार को दूर करता है, उसी तरह हमें भी अपने जीवन में ज्ञान, प्रेम और करुणा की चांदनी फैलानी चाहिए।
शरद पूर्णिमा केवल एक धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि प्रकृति, विज्ञान और अध्यात्म का सुंदर संगम है। यह रात हमें याद दिलाती है कि अमृत कहीं आकाश में नहीं, बल्कि हमारे भीतर ही है—बस हमें उसे पहचानने की देर है। चांदनी की वह शांत, निर्मल उजास हमें यह सिखाती है कि जीवन में सबसे बड़ा अमृत है प्रेम, संतुलन और शांति का प्रकाश।
यही शरद पूर्णिमा का सच्चा संदेश है —
अमृत बाहर नहीं, भीतर की चांदनी में खोजो।

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