डॉ दिव्या तिवारी
छात्राओं को कलेक्टर, कप्तान, ADM, SDM, CDO या थाना अध्यक्ष जैसे पदों पर नियुक्त करना निश्चित रूप से नारीशक्ति के प्रतीकात्मक और व्यावहारिक उन्नयन का संकेत देता है, परंतु केवल पदस्थापन से समाज में भय और अपराध की वास्तविक जड़ें समाप्त नहीं होतीं । महिलाओं की प्रशासनिक उपस्थिति शासन को अधिक संवेदनशील और जवाबदेह बनाती है, जिससे नीति-निर्माण में सामाजिक दृष्टिकोण बदलता है, लेकिन हिंसा पर नियंत्रण के लिए यह केवल आंशिक उपाय है ।नारी प्रशासन और सशक्तिकरणप्रशासनिक सेवाओं में महिलाओं की संख्या लगातार बढ़ रही है, जिससे शासन में लैंगिक समानता और पारदर्शिता को बल मिला है। अध्ययनों से सिद्ध है कि महिला अधिकारी कार्य में सहानुभूति और ईमानदारी लाती हैं, जिससे भ्रष्टाचार घटता और सामाजिक विश्वास बढ़ता है ।
फिर भी, जमीनी स्तर पर हिंसा, अपहरण और यौन अपराध जैसे मुद्दे केवल कानूनी और सामाजिक सुधारों के संयोजन से ही नियंत्रित हो सकते हैं ।जमीनी उपायों की आवश्यकतानारी सुरक्षा के लिए भारत में PWDV अधिनियम 2005 जैसे कानून मौजूद हैं जो शारीरिक, यौन और मानसिक हिंसा से सुरक्षा प्रदान करते हैं। यह अधिनियम महिलाओं के अधिकारों को संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 के तहत मज़बूती देता है । लेकिन इसका प्रभाव तभी होता है जब पुलिस, प्रशासन और समाज समान सोच से काम करें — सिर्फ भय नहीं, बल्कि न्याय की तेज़ और निष्पक्ष प्रक्रिया जरूरी है ।कठोर दंड बनाम सामाजिक सुधारभारत के नए भारतीय दंड संहिता (BNS) और आईपीसी धारा 376 के तहत बलात्कारियों को 20 वर्ष से लेकर मृत्युदंड तक की सजा दी जा सकती है। 16 वर्ष से कम आयु की पीड़िता के मामले में न्यूनतम 20 वर्ष का कठोर कारावास अनिवार्य है ।
हालांकि “गरम सलाख़ों से चेहरा विकृति” जैसे शारीरिक दंड नैतिक रूप से अवैध और संवैधानिक मर्यादाओं के विरुद्ध हैं। डर पैदा करने से अधिक प्रभावी है तेज़ न्याय प्रणाली, सामाजिक शिक्षा और नैतिक पुनर्निर्माण ।आक्रामक विवेचन की दृष्टिनारीशक्ति का उद्देश्य हिंसक प्रतिशोध नहीं, बल्कि संवेदनशील और प्रभावी शासन से सुरक्षा तंत्र सुदृढ़ करना है। आक्रोश को नीति में बदलना ही वास्तविक "आक्रामक विवेचन" है — जैसेअदालतों में त्वरित न्यायालयों की संख्या बढ़ाई जाए।अपराधी पर आर्थिक दंड और सामाजिक प्रतिबंध लागू हों।विद्यालयों में लैंगिक नैतिकता और सहभावना शिक्षा को अनिवार्य किया जाए।केवल “महिला अधिकारी” नहीं, बल्कि महिला दृष्टिकोण वाला प्रशासन ही स्थायी नारीशक्ति का संदेश दे सकता है ।
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