शनिवार, 25 अक्टूबर 2025

नदियाँ: राष्ट्रवाद और राष्ट्रीय संस्कृति की सबसे बड़ी संवाहक, इसकी उपेक्षा??

 नदियाँ: राष्ट्रवाद और राष्ट्रीय संस्कृति की सबसे बड़ी संवाहक



भारतीय सभ्यता की नींव में नदियाँ ही वह अमृत धारा हैं, जो जीवन को पोषित करती हैं, संस्कृति को सिंचित करती हैं और राष्ट्रवाद की ज्वाला को प्रज्वलित करती हैं। गंगा, यमुना, सरस्वती, ब्रह्मपुत्र, नर्मदा—ये न केवल जल के स्रोत हैं, अपितु वे प्राचीन काल से ही राष्ट्र की आत्मा के संवाहक बने हुए हैं। राष्ट्रवाद वह भावना है जो व्यक्ति को अपने राष्ट्र से जोड़ती है, उसे एक सूत्र में बाँधती है, और राष्ट्रीय संस्कृति वह विविधता में एकता का प्रतीक है जो पीढ़ियों से चली आ रही परंपराओं, कला, साहित्य और आध्यात्मिकता का समन्वय है। नदियाँ इन दोनों की सबसे बड़ी संवाहक हैं, क्योंकि वे सीमाओं को लाँघकर, विविध भूगोल को एकाकार करती हैं, और मानव मन की गहन आकांक्षाओं को प्रतिबिंबित करती हैं।

इस लेख में हम देखेंगे कि कैसे नदियाँ राष्ट्रवाद की जड़ें मजबूत करती हैं—स्वाधीनता संग्राम से लेकर आधुनिक एकीकरण तक—और राष्ट्रीय संस्कृति को जीवंत रखती हैं, तीर्थों, उत्सवों और साहित्य के माध्यम से। q जो नदियों की महिमा को उदात्त भाव से उजागर करेगा। नदियाँ न केवल जल हैं, वे राष्ट्र की धमनियाँ हैं, जो रक्त की तरह संस्कृति का संचार करती हैं।

नदियाँ और राष्ट्रवाद: एकीकरण की धारा

राष्ट्रवाद का बीज प्राचीन काल से ही नदियों के तट पर अंकुरित हुआ। सिंधु घाटी सभ्यता से लेकर वैदिक युग तक, नदियाँ ने मानव समुदायों को एकत्रित किया। ऋग्वेद में सरस्वती को 'नदियों की देवी' कहा गया है, जो ज्ञान और एकता का प्रतीक है। यह एकता ही राष्ट्रवाद का मूल है। जब हम गंगा को देखते हैं, तो वह मात्र नदी नहीं, बल्कि हिमालय की गोद से निकलकर बंगाल की खाड़ी तक पहुँचने वाली वह धारा है जो उत्तर से दक्षिण, पूर्व से पश्चिम तक भारत को जोड़ती है। यह धारा ब्रिटिश काल में भी राष्ट्रवाद की प्रेरणा बनी। महात्मा गांधी ने गंगा स्नान को स्वराज का प्रतीक बनाया, क्योंकि नदी की पवित्रता ही राष्ट्र की पवित्रता है।

स्वाधीनता संग्राम में नदियों की भूमिका ओजपूर्ण रही। १८५७ का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम गंगा-यमुना के दोआब क्षेत्र से प्रज्ज्वलित हुआ। मंगल पांडे जैसे वीरों ने गंगा के तट पर ही विद्रोह की शपथ ली। १९४२ के भारत छोड़ो आंदोलन में नर्मदा के तटों पर आदिवासी समुदायों ने ब्रिटिश शासन के विरुद्ध विद्रोह किया। नर्मदा, जो 'रेफा नर्मदा' के रूप में जानी जाती है, ने मध्य भारत के राष्ट्रवाद को मजबूत किया। यहां तक कि नेल्सन मंडेला जैसे वैश्विक नेता भारतीय नदियों से प्रेरित होकर दक्षिण अफ्रीका में एकता की बात करते थे।

आधुनिक भारत में नदियाँ राष्ट्रवाद की संवाहक बनी हुई हैं। गंगा एक्शन प्लान से लेकर नमामि गंगे अभियान तक, ये प्रयास राष्ट्र की एकता को दर्शाते हैं। जब २०१४ में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गंगा को अविरल बनाने का संकल्प लिया, तो यह मात्र पर्यावरणीय मुद्दा नहीं था, बल्कि राष्ट्रवाद का प्रतीक था—क्योंकि गंगा को बचाना अर्थात् भारत की आत्मा को बचाना। नदियाँ सीमाओं पर भी राष्ट्रवाद की रक्षा करती हैं। ब्रह्मपुत्र ने असम में बाढ़ों के बावजूद लोगों को एकजुट रखा, और १९६२ के चीन युद्ध में यह नदी भारतीय सैनिकों की प्रेरणा बनी।

नदियाँ राष्ट्रवाद को केवल एकीकरण ही नहीं सिखातीं, बल्कि संघर्ष भी। गोदावरी के तट पर तेलुगु राष्ट्रवाद ने जन्म लिया, जो आंध्र प्रदेश की पहचान है। इसी प्रकार, कावेरी विवाद ने तमिल और कर्नाटक के बीच जल बंटवारे को राष्ट्रवाद से जोड़ा। ये विवाद दर्शाते हैं कि नदियाँ कैसे क्षेत्रीय भावनाओं को राष्ट्रीय एकता में परिवर्तित करती हैं। यदि नदियाँ न होतीं, तो भारत की विविधता विखंडित हो जाती। वे ही हैं जो 'एक भारत, श्रेष्ठ भारत' का मंत्र जीवंत रखती हैं।

नदियाँ और राष्ट्रीय संस्कृति: सिंचन की अमृत धारा

राष्ट्रीय संस्कृति वह मिट्टी है जिसमें राष्ट्रवाद का पेड़ फलता-फूलता है, और नदियाँ इस मिट्टी को सिंचित करती हैं। भारतीय संस्कृति नदी-केंद्रित है। वेदों से लेकर पुराणों तक, नदियाँ देवताओं का रूप धारण करती हैं। गंगा को शिव की जटाओं से निकली माना जाता है, जो त्रिशूल से प्रेरित होकर पृथ्वी पर उतरी। यह कथा संस्कृति की गहनता दर्शाती है—नदी न केवल जल है, बल्कि आध्यात्मिक ऊर्जा है। प्रयागराज का कुंभ मेला, जो गंगा-यमुना-सिंधु के संगम पर होता है, विश्व का सबसे बड़ा मानवीय समागम है। यहां करोड़ों लोग एकत्रित होकर संस्कृति का उत्सव मनाते हैं—स्नान, ध्यान, संगीत। यह राष्ट्रीय संस्कृति का जीवंत चित्रण है, जहां जाति, वर्ण भुला दिए जाते हैं।

नदियों ने साहित्य को भी समृद्ध किया। कालिदास की 'मेघदूत' में नर्मदा की सुंदरता का वर्णन है, जो प्रेम और संस्कृति का प्रतीक है। तुलसीदास ने रामचरितमानस में गंगा को राम की भक्ति से जोड़ा। आधुनिक साहित्य में भी, भगवती चरण वर्मा की 'चित्रलेखा' नर्मदा के तट पर बुनी गई है। ये रचनाएँ संस्कृति को नदियों के माध्यम से अमर बनाती हैं। लोक संस्कृति में नदियाँ उत्सवों की संवाहक हैं। छठ पूजा में गंगा-यमुना के तटों पर सूर्य को अर्घ्य चढ़ाया जाता है, जो प्रकृति पूजा की परंपरा है। ओणम में पेरियार नदी केरल की संस्कृति को जीवंत करती है।

कला और वास्तुकला में नदियाँ प्रेरणा स्रोत हैं। वाराणसी के घाट गंगा की गोद में बसे हैं, जहां हर घाट एक कृति है—मणिकर्णिका से लेकर दशाश्वमेध तक। ये घाट नृत्य, संगीत और चित्रकला को आश्रय देते हैं। राजस्थान की बाण गंगा ने लोक नृत्यों को जन्म दिया। यहां तक कि संगीत में भी, राग मालकौंस गंगा की धुन से प्रेरित है। नदियाँ संस्कृति को संरक्षित भी करती हैं। सरस्वती, जो अब भूमिगत हो चुकी है, फिर भी हरियाणा और राजस्थान में वेदों की स्मृति बनी हुई है।

विविधता में एकता का प्रतीक नदियाँ ही हैं। उत्तर की गंगा हिमालयी संस्कृति को दक्षिण की कावेरी से जोड़ती है, जहां तमिल साहित्य ने पांड्य राजाओं के काल में फला-फूला। पूर्व में ब्रह्मपुत्र ने बोडो और असमिया संस्कृति को एकीकृत किया, जबकि पश्चिम में लूनी ने राजपूताना की वीर गाथाओं को सिंचित किया। ये नदियाँ सांस्कृतिक आदान-प्रदान का माध्यम हैं—व्यापार, विवाह, तीर्थयात्रा सब इन्हीं पर निर्भर। यदि संस्कृति एक वृक्ष है, तो नदियाँ इसकी जड़ें हैं, जो गहराई तक फैली हुई हैं।

नदियाँ: चुनौतियाँ और भविष्य की आह्वान

नदियाँ राष्ट्रवाद और संस्कृति की संवाहक हैं, किंतु आधुनिक युग में वे संकट में हैं। प्रदूषण, बाँध निर्माण और जलवायु परिवर्तन ने इन्हें कमजोर किया है। यमुना का काला जल देखकर हृदय विदीर्ण हो जाता है। फिर भी, ये संकट राष्ट्रवाद को जागृत करते हैं। 'नमामि गंगे' जैसे अभियान लाखों लोगों को एकजुट कर रहे हैं। यह दिखाता है कि नदियाँ कैसे संकटकाल में भी संस्कृति की रक्षा करती हैं।

भविष्य में नदियों को बचाना राष्ट्रवाद का कर्तव्य है। जल संरक्षण से हम संस्कृति को संरक्षित करेंगे। युवा पीढ़ी को नदियों से जोड़ना होगा—स्कूलों में गंगा यात्रा, नर्मदा परिक्रमा जैसे कार्यक्रम। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी, गंगा-ब्रह्मपुत्र जैसे बहुआयामी नदी तटों पर सांस्कृतिक आदान-प्रदान बढ़ेगा, जो वैश्विक राष्ट्रवाद को मजबूत करेगा।

नदियाँ राष्ट्रवाद और राष्ट्रीय संस्कृति की सबसे बड़ी संवाहक हैं—वे धारा हैं जो जीवन, एकता और परंपरा को बहा लाती हैं। गंगा की तरह अविरल, नर्मदा की तरह अडिग, सरस्वती की तरह ज्ञानपूर्ण। इनके बिना भारत का चित्रण अधूरा है। आइए, हम संकल्प लें कि इनकी रक्षा करेंगे, क्योंकि इनकी धारा में ही हमारी धरोहर बह रही है। जय गंगा, जय भारत!

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